गुगा जाहर वीर मंदिर ज्योरा में आपका स्वागत है। यह एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर है। कहते है की लगभग 200 साल पहले बड़ी बिल्योर के श्री राम सिंह लाहौर की एक जेल में कैद हो गए थे तो उन्होंने गुगा जाहर वीर का स्मरण करते हुए प्रार्थना की, कि अगर मै जेल से छूट गया तो मैं घर पहुँच कर गुगा की एक मूर्ति बना कर उसे मंदिर में स्थापित करुंगा। गुगा जाहर वीर की कृपा से अगले दिन उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। उन्होंने लाहौर से घर पहुँच कर गावों वालो के साथ मिलकर ज्योरा के जंगल में मूर्ति का निर्माण करवाया और उसे उठा कर बड़ी बिल्योर के लिए चल पड़े ! जैसे ही वे ज्योरा में पहुंचे तो कुछ आराम करने के लिए रुक गए. कुछ देर के बाद जब वे मूर्ति को उठने लगे तो मूर्ति इंतनी भारी हो गयी कि वे सब मिलकर भी उस मूर्ति को नहीं उठा सके. उसी समय एक व्यक्ति को गुगा की छाया आई और उसने कहा की मैं इस गावं के टीले पर ही रहूँगा क्योंकि इस गावं का नाम मेरे पिता जी के नाम जेवर से ही ज्योरा पड़ा है। फिर लोगो ने उस मूर्ति को उठाने की कोशिश की तो मूर्ति हलकी हो गयी तथा ज्योरा गावों के लोगो के सहयोग से उस मूर्ति को ज्योरा के टीले पर पहुंचाया गया तथा घास-फूस के मंदिर का निर्माण करके उस मूर्ति को वहां स्थापति कर दिया गया। इसके उपरांत ज्योरा गावं के लोग वहां पर पूजन आदि करने लग गए। हर वर्ष अगस्त महीने में रक्षा बंधन के दिन शाम को मंदिर में गुगा की आरती के बाद गावँ की मण्डली गावं के बीच में गुगा की गाथा को गाते तथा यह क्रम नौ दिन तक चलता तथा गुगा नवमी तक मण्डली आस-पास के गावों में गुगा गाथा को गाते रहते है. गुगा नवमी के दिन सभी मंडलिया शाम को एक बार फिर गुग्गा की आरती करते हैं दशमी के दिन लोग गुग्गा के मंदिर में रोट, दूध और पैसे आदि गुग्गा को अर्पण करते। दशमी के दिन मंदिर में एक मेले का भी आयोजन होता है. आस-पास के गाँव में जब भी किसी की शादी होती तो सबसे पहले गुग्गा के मंदिर में जाते और अपनी मन्नत आदि चढ़ा कर माथा टेकते हैं। ज्योरा तथा आस-पास के गाँव के लोग हर वर्ष मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन करते तथा लगातार ९ दिन तक लंगर का आयोजन करते है.
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