Wednesday, 1 April 2015

माता बाछल जी की कथा

माता बाछल का जन्म दिल्ली के राजा राय पथौरी के यहाँ हुआ था. माता बाछल की तीन बहनें थी. उनमें से माता बाछल मझली बेटी थी. बाछल और काछल दोनों जुडवां बहनें थी उनकी एक और बहन का नाम आछल था! माता बाछल और काछल माता की शादी मारू देश के राजा जेवर से हुई. बाछल माता के गर्भ से गुगा मल चौहान का जन्म हुआ और काछल के गर्भ से अर्जुन और सुर्जन दो जुड़वाँ बेटे हुऐ। माता बाछल शांत भाव की थी वो अपना जयादा-तर समय भगवान की पूजा में लगाया करती थी। वो गुरु गोरख नाथ की भक्त थी, वो नित्य-प्रति गुरु गोरख के धूणी को साफ किया करती और वहां गौ माता के गोबर से लिपाई-पुताई करती थी.
माता बाछल और जेवर राजा के कोई संतान नहीं थी इसके लिए माता बाछल ने सारे देवी देवताओँ की पूजा अर्चना की फिर भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई तो किसी ने कुछ बताया और किसी ने कुछ ! फिर भी उन्हें अपने प्रयत्न में कोई सफलता नहीं मिली। तब किसी ने गुरु गोरख नाथ जी का नाम बताया और कहा की तुम्हें १२ सालों तक गुरु की सेवा करनी होगी प्रति-दिन. तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो सकती है, माता बाछल ने प्रतिदिन गुरु का ध्यान करना शुरू कर दिया और १२ सालो तक बिना किसी रुकावट के करती रही. १२ सालों के बाद गुरु गोरख नाथ जी मारू देश की धरती पर आगमन किया. उस समय मारू देश में सूखा पड़ा हुआ था और कहीं कुछ खाने और पिने को पानी तक नहीं था गुरु ने देखा की उनके चेले प्यास से ब्याकुल है तो गुरु ने चमिटा धरती पर मार कर पानी निकला और चेलों की समस्या का समाधान किया.
गुरु के आने की खबर जब रानी को हुई तो वो गुरु से मिलने गुरु के डेरे की तरफ चल दी, माता बाछल अपनी तपस्या का फल लेने और गुरु से मिलने उनके डेरे में पहुंची, डेरे में जाकर माता ने सबसे पहले गुरु की वन्दना की और सेवा की, गुरु जी बाछल माता की तपस्या को देख कर काफी खुश हुऐ और खुश होकर उन्हें फल दिया, और कहा की ये पुत्र तुम्हारा और तुम्हारे कुल का नाम रोशन करेगा और ये नागों का वरदाई, नाग इसे कभी नहीं जीत सकते और यह युगों युगों तक प्रसिद्ध रहेगा लोग इसकी पूजा भगवान की तरफ करगे।

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